महाशिवरात्रि पर विशेष विश्व के सबसे बड़े शिवलिंग ,,, चमत्कारिक भूतेश्वरनाथ की महिमा व तीर्थ धाम राजिम महिमा की पूरी कहानी ,,, पैरी लहर पर

कुंजबिहारी ध्रुव ब्यूरो चीफ गरियाबंद

गरियाबंद – यह क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित हैं इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था परंतु कालांतर में गरियाबंद कहलाया ।

भूमि, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते है । इन्हीं पंचभूतों के स्वामी भूतेश्वरनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान है यहां भूतेश्वरनाथ प्रांगण अत्यंत विशाल हैं जो भूतेश्वरनाथ धाम को भव्यता प्रदान करते है । वनों से आच्छादित सुरम्य स्थलि बरबस मन को मोह लेती हैं, समय-समय पर यहां भक्तजन रूद्राभिषेक कराते हैं कांवरियों को सावन में भूतेश्वरनाथ को जल चढ़ाने का बेसब्री से इंतजार रहता है ।

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर विश्व के विशालतम स्वयंभू शिवलिंग भूतेश्वरनाथ महादेव के दर्शन एवं पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं ताता लग जाता है

प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर्व भूतेश्वरनाथ में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और तीन दिनों तक यहां मड़ई-मेला का आयोजन भी किया जाता है।

जिसको लेकर प्रदेश व अन्य राज्य  के श्रद्धालुगण अपना श्रद्धा लिए महादेव के दर्शन को पहुंचते हैं। जन आस्था को ध्यान में रखकर पुलिस विभाग द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से चाक-चैबंध व्यवस्था किया जाता है,

उल्लेखनीय है कि गरियाबंद जिला के ग्राम मरोदा में विश्व के सबसे विशालतम स्वयंभू शिवलिंग स्थित है। महाशिवरात्रि पर्व के मौके पर भूतेश्वरनाथ महादेव शिवभक्तों का आस्था केंद्र बन गया है, जिससे कि प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में भक्तगण यहां पहुंचे हैं और पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूरी होने प्रार्थना करते हैं। कहा जाता है कि भूतेश्वरनाथ महादेव स्वयंभू शिवलिंग हैं, जिसके पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालुओं की मुरादे पूरी होती है,

इसी श्रद्धा और विश्वास के चलते ही भूवेश्वरनाथ महादेव शिवभक्तों के आस्था का केंद्र बन गए हैं। आपको बता दें कि यह ऐसा शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है कि यह हर वर्ष नित-नित बढ़ते ही जा रहा है, जो अब काफी विशालकाय हो गया है। हरे-भरे प्राकृतिक वादियों के बीच जिला मुख्यालय गरियाबंद से महज तीन किलोमीटर दूर अद्भुत, अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग पूरे छत्तीसगढ़ के शिवभक्तों के आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां दूर-दूर से भक्त जल लेकर भगवान शिव को अर्पित करने पहुंचते हैं। यह विश्व का सबसे विशाल और प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में माना जाता है, यह शिवलिंग प्रतिवर्ष अपने आप में बढ़ता जा रहा है श्री भूतेश्वर धाम महिमा में लिखा गया है कि इस शिवलिंग की ऊंचाई सन् 1978 में 48 फीट, सन् 1987 में 55 फीट, सन् 1996 में 62 एवं सन् 2022 में इनकी ऊॅचाई 72 फीट उंचा और 210 फीट गोलाकार में है। शिवलिंग के समीप प्राकृतिक जलहरी है, शिवलिंग के पीछे बाबा कि प्रतिमा है, जिसमें माता पार्वती व गणेश, कार्तिक, नंदी के साथ विराजमान हैं। जहां पर पंचमुखी शिवलिंग के दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ, पार्वती, श्रीगणेश एवं कार्तिके के दर्शन और पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं के मन मांगी मुरादें जरूर पूरी करते हैं, यही कारण है कि बीते 10-15 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। वहीं मंदिर प्रागंण में कई अन्य मंदिर बने हुए हैं।

महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश के अन्य जिलों सहित अंचल के दूर-दूराज इलाकों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां भगवान भूतेश्वरनाथ के दर्शन करने पहुंचेंगे। जिसे लेकर पुलिस प्रशासन ने भी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किए हुए हैं।
विश्व का सबसे बडा शिवलिंग भूतेश्वर नाथ महादेव में आज महाशिवरात्रि का पर्व भक्तिमय वातावरण में वैदिक पूजन करते हुए मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि के पर्व को महादेव की पूजा-अर्चना की दृष्टि से उत्तम माना गया है। प्रदेश सहित जिले के ग्रामीण अंचलों के लोग सुबह से ही महाशिवरात्रि के अवसर पर महादेव के मंत्रों का जाप करते हुए श्रद्धालु पूजन कर मनचाहा वरदान मांगेगे। मान्यता के अनुसार इस दिन वैदिक मंत्र जाप करते हुए महादेव का जलाभिषेक व व्रत पूजन का विधान है। शिवभक्त भूतेश्वरनाथ में पहुचकर शिवलिंग में बेलपत्र चढ़ा कर दूध से अभिषेक करते हैं। बताया जाता है कि भगवान भूतेश्वरनाथ के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, और इसकी महिमा अपरंपार है, जो मुरादे यहां दिल से मांगी जाती है भगवान भूतेश्वरनाथ उसे जरुर पुरा करते है, इसीलिए यहां की महिमा लगातार बढ़ती ही जा रही है।

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बुजुर्गो का कहना है कि कोल्हापुर (महाराष्ट्र) से एक वृद्धा माताजी आई, इन्होंने ही सर्वप्रथम अंचल के लोगों को इस प्राकृतिक शिवलिंग के संबंध में ज्ञात कराई तब से श्रद्धालु भक्तजन यहाँ भगवान भोलेनाथ के नाम से पूजा अर्चना करते चले आ रहे है । मरौदा (गरियाबंद) के इस प्राकृतिक अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग को देखकर आश्चर्य चकित हो जाना पड़ता है, क्योंकि इस प्राकृतिक शिवलिंग में गंगा, चन्द्रामा, त्रिपुण्ड प्राकृतिक रूप में स्पष्ट दिखाई देते है । इसे श्री भूतेश्वरनाथ (भकुर्रा-बैल के हुंकारने के आवाज को भकुर्रा) महादेव कहते है । इस स्थान से 5किलोमीटर की दुरी पर माँ बम्हनी का वास पर्वत शिखर पर स्थित है। वहाँ तक जाने का सुगम रास्ता नहीं है, इसलिए इनकी स्थापना पर्वत के निचले भाग में की गई है ।

◆ आस्था, अध्यात्म व संस्कृति का अद्भुत संगम राजिम धाम

आस्था, अध्यात्म  व संस्कृति का अद्भुत संगम छत्तीसगढ़ प्रदेश के हृदय स्थल में स्थित राजिम एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह महानदी, पैरी, सोढ़ूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। यहां पर भगवान विष्णु के एक रूप श्रीराजीव लोचन का सुप्रसिद्ध मंदिर है, जो आदिकाल से प्रदेश वासियों के आस्था विश्वास का अटूट केन्द्र बना हुआ। यह आस्था के साथ-साथ अपनी शानदार वास्तुकला व सौंदर्यपूर्ण पत्थरों की नक्काशी और कलात्मकता के लिए भी जाना जाता है। नल वंशी विलासतुंग के राजीवलोचन मंदिर अभिलेख के आधार पर इस मंदिर को 8वीं शताब्दी का कहा गया है। राजिम अपनी समृद्धि सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन सुंदर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

त्रिवेणी संगम के बीच भगवान श्री कुलेश्वरनाथ महादेव का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि भगवान प्रभु राम वनगमन के दौरान माता जानकी द्वारा स्वयं अपने हाथों से शिवलिंग का निर्माण किया व प्रभु राम, लक्ष्मण व मां सीता द्वारा पूजित कर यहां स्थापित किया गया, जो आज श्री कुलेश्वरनाथ के रूप में पूजा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि सृष्टि की शुरूआत में भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल निकला, जिसे यहां स्थापित किया गया एवं भगवान ब्रम्हाजी ने यही से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की।

इसीलिए इसे कमलक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। पंचकोशी की पावन यात्रा भी राजिम में पहुंचकर ही पूर्ण मानी जाती है।
मान्यता के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन भगवान श्री राजीव लोचन का जन्म दिवस है। इसके उपलक्ष्य में आदि काल से राजिम के इस पावन भूमि में पुन्नी मेला भरते आ रहा है। सर्वप्रथम वर्ष 2001 में राजिम पुन्नी मेला को ‘‘राजीव लोचन महोत्सव’’ के रूप में मनाया गया। तत्पश्चात वर्ष 2005 में इसे कुम्भ का नाम दिया गया। वर्ष 2019 में वर्तमान सरकार द्वारा पुनः राजिम माघी पुन्नी मेला को इसके मूल स्वरूप में मनाने का निर्णय लिया गया, जो चैथे वर्ष भी गरिमा और भव्यता के साथ आयोजित किया जा रहा है।

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◆ 15 दिनों मेला का आयोजन करती है राज्य सरकार

इस वर्ष 16 फरवरी माघी पूर्णिमा से 01 मार्च महाशिवरात्रि तक आयोजित मेला में श्रद्धालुओं और आगंतुकों को शासकीय विभागों द्वारा जनकल्याणकारी कार्यक्रम और योजनाओं की जानकारी देने विभागीय स्टाॅल लगाया गया है। इसके अलावा विभागों द्वारा लाइव डेमो, युवा, वन, आदिवासी व किसान, महिला सम्मेलन व कन्या विवाह जैसे कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। सरस मेला में दीदी, दाई द्वारा बनाये गये उत्पादों को विक्रय कर आय अर्जित करने का अवसर भी दिया जा रहा है। इस वर्ष मेले में लक्ष्मण झूला में लेजर शो का आयोजन किया गया है, जो आकर्षण का विशेष केन्द्र है।
मेला में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था की गई है। बेरिकेडिंग, सीसी टीवी कैमरा व अन्य सुविधाओं का भी ख्याल रखा गया  मेला क्षेत्र में फूड जोन, निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर व स्वच्छ, पेयजल की समुचित व्यवस्था रहती है

◆ कुलेश्वरनाथ महादेव के महिमा की कथा

त्रिवेणी संगम के मध्य मेें स्थित भगवान श्री कुलेश्वरनाथ महादेव के स्थापना त्रेतायुग में महाराज दशरथ के पुत्र वधु माता सीता ने अपने हाथों से किया था।  वनवास काल के दौरान श्रीराम, लक्ष्मण एवं माता सीता रामायण काल के यह तीनो मूर्ति समय का सद्पयोग करते हुए दक्षिण कौशल में उपस्थित असुरी शक्तियो का नाश किया। नदी मार्ग से चलते हुए महर्षि लोमष से मिलने त्रिवेणी संगम के तट पर पहुचे तथा चौमासा यही व्यतीत किया। इस दौरान नदी में स्नान कर माता सीता अपने कुल की आराध्य देव की अराधना के लिए रेत से अपने हाथो के द्वारा शिवलिंग का निर्माण किया। पश्चात जलाभिषेक किया। इससे जल की धारा पांच ओर से फुटकर बह गया और उसी दिन से इनका नाम पंचमुखी पड़ गया। रामचंद्र ने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना की है, तो माता सीता ने राजिम में श्री कुलेश्वरनाथ महादेव का निर्माण किया है। जानकारी के मुताबिक एक अंतराल के बाद यहां मंदिर का क्रम शुरू हुआ। उस समय बाढ़ आने के कारण हर बार बह जाता था। एक जमींदार ने चबूतरा बनाने की ठान ली और हर बार वह बह जाता इससे उन्हें बहुत दुख हुआ। अचानक एक दिन त्रिवेणी संगम में ही उन्हें साधु मिला तब अपना सारा दुखड़ा सुनाया। साधु ने एक चिमटा प्रदान किया और कहा कि इसे ले जाकर जहां तुम चबुतरा बना रहे हो उसी स्थान पर गड़ा देना। जमींदार ने ऐसा ही किया और देखते ही देखते 17 फुट की ऊंची जगती तल का निर्माण हो गया। महादेव का यह मंदिर सातवीं शताब्दी का माना गया है। गर्भगृह मे श्री कुलेश्वरनाथ महादेव का शिवलिंग है नीचे वेदी पर मां पार्वती है। अतः अर्धनारीश्वर के रूप में भक्तगण अराधना करते है। महामंडप पर मां काली, श्याम कार्तिकेय, मां शीतला, भैरव बाबा, शनिदेव, की मूर्तियां भित्ती में स्थापित है। सामने नंदी महाराज पालथी मारकर बैठे हुए है। इससे लगा हुआ एक और गर्भगृह है। बताया जाता है कि इन्हें बाद में बनाया गया है। इसमें मां दुर्गा की मूर्ति विराजमान है इनके संबंध में कहा जाता है कि यह मूर्ति नदी की रेत में बहते हुए मिली थी, जिसे किसी श्रद्धालु ने लाकर यहां प्रतिष्ठित कर दिया।

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चबुतरे पर करीब 600 साल पुरानी पीपल का वृक्ष है, जो मंदिर की सुदंरता पर चार चांद लगाये हुए है। इस विशाल वृक्ष के नीचे मां गंगा, गणेशजी, हनुमानजी की मूर्तियां है। मंदिर में चढ़ने व उतरने के लिए तीन ओर से सीढ़िया है जिनमें प्रथम पूर्वाभिमुख, व्दितीय उत्तराभिमुख एवं तृतीय कम चैड़ाई के सीढ़ी दक्षिण दिशा में है। कहते है कि श्रद्धालुगण शिवलिंग की पूजा अर्चना करने के बाद अक्षत, द्रव्य, फूल पत्तियां, दूध, दही आदि सामग्री अंदर से ही नदी मिल जाते थे। परन्तु बाद में कुछ लोगों ने इन्हे बंद कर दिया। छिद्र के बंद होने से अब ऊॅ की ध्वनि सुनाई नही देती। महादेव की दो बार वैदिक विधि से पूजा अर्चना की जाती है शिव आरती में घंटियो की झंकार एवं डमरू की आवाज माहौल को भक्ति रस में घोल देती है। उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया में 275 पवित्र शिव पीठो का उल्लेख मिलता है। व्दादश ज्योतिलिंग है तथा 108 पवित्र शिवलिंगो की गिनती होती है, जिस इन शिवपीठो की मान्यता है उसी प्रकार श्री कुलेश्वरनाथ की भक्ति में भक्तगण हमेशा रमें रहते है। माघी पुन्नी मेला के स्नान के साथ ही शिवलिंग के दर्शनकर श्रद्धालुगण अपने आप को पवित्र मानते है।

◆देखते ही बनती है राजिम के राजीव लोचन मंदिर की भव्यता

छत्तीसगढ़ के प्रयाग राज धर्म नगरी राजिम की पहचान भगवान श्री राजीव लोचन मंदिर प्राचीन भारतीय सभ्यता का जीता जागता प्रमाण है, इसकी भव्यता देखते ही बनती है। छत्तीसगढ़ के प्रयाग के रूप में प्रख्यात राजिम की ख्याती राजीव लोचन मंदिर व यहां विराजे भगवान विष्णु के साथ जुड़ी है।

वहीं नदी के दूसरी ओर श्रीकुलेश्वर महादेव का मंदिर इस प्राचीन नगरी को अदभुत बनाती है। राजिम का राजीव लोचन मंदिर आठवीं शताब्दी का है।

इसके जन्मदिन के अवसर पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक मेला आयोजित किया जाता है। भले ही मेले का स्वरूप बदला हो लेकिन इसकी पौराणिक मान्यता युगों-युगों तक बरकरार रहेगी।

धर्म नगरी राजिम का प्राचीन नाम कमल क्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।